जब जीवन की शाम ढल कर, तुझे रुकने को मजबूर करती है
तब आशा की एक किरण जलकर तुझसे यह कहती है
तुझ में भी जीवन बाकी है और एक कोशिश तो बनती है।
सरहद के पार रहनेवाले, हर शक्स ग़ैर नही होता है
उस पार भी उम्मीदें बस्ती है उस पार भी सपने रहते है
उस ग़ैर को भी गर अपनालें बस एक कोशिश तो बनती है।
हर बार लड़ा फिर भी हारा, तुझमें क्या उत्साह खलता है
संघर्ष तो फिर भी जारी रख, हर रात का चाँद भी ढलता है
अपने कर्मों का फल चखने की एक कोशिश तो बनती है।
अपने भी संग छोड़ चले और सफर तेरा अधूरा है
हर राह भी एकदम निर्जन हो और पथ पर घनघोर अंधेरा है
अपनी परछाईं को संग लेकर चलनेकी एक कोशिश तो बनती है।
तु कमज़ोर नही, तु सक्षम है, तेरा भी कुछ हक बनता है
तेरे भी कुछ अरमान है जिनको जीने का सपना है
उन सपनो को साकार करे चल एक कोशिश तो बनती है।
- सुनील सिंह राणा
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