Tuesday 15 April 2014

एक कोशिश तो बनती है!

जब जीवन की शाम ढल करतुझे रुकने को मजबूर करती है

तब आशा की एक किरण जलकर तुझसे यह कहती है

तुझ में भी जीवन बाकी है और एक कोशिश तो बनती है

 

सरहद के पार रहनेवालेहर शक्स ग़ैर नही होता है

उस पार भी उम्मीदें बस्ती है उस पार भी सपने रहते है

उस ग़ैर को भी गर अपनालें बस एक कोशिश तो बनती है

 

हर बार लड़ा फिर भी हारातुझमें क्या उत्साह खलता है

संघर्ष तो फिर भी जारी रखहर रात का चाँद भी ढलता है

अपने कर्मों का फल चखने की एक कोशिश तो बनती है

 

अपने भी संग छोड़ चले और सफर तेरा अधूरा है

हर राह भी एकदम निर्जन हो और पथ पर घनघोर अंधेरा है

अपनी परछाईं को संग लेकर चलनेकी एक कोशिश तो बनती है

 

तु कमज़ोर नहीतु सक्षम हैतेरा भी कुछ हक बनता है

तेरे भी कुछ अरमान है जिनको जीने का सपना है

उन सपनो को साकार करे चल एक कोशिश तो बनती है

 

सुनील सिंह राणा

 

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